'उषा' कविता का व्याख्या । USHA KAVITA KA VYAAKHYA | NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 2
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प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे
भोर का नभ
राख से लिपा हुआ चौका
(अभी गिला परा हैं)
शब्दार्थ –भोर –सबेरा ।नभ –आकाश ।चौका –रोसोई बनाने का
स्थान ।
बहुत काली सिल जरा से लाल केसर से
की जैसे धुल गई हो
स्लेट पर या लाल खड़िया चाक
मल दी हो किसी ने
शब्दार्थ -सिल-मसाला पीसने के लिए बनाया पत्थर । केसर-विशेष फूल। मल देना- लगा देना ।
प्रसंग– प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित ‘उषा’ कविता से उदधृत है।इसके रचयिता प्रसिद्धप्रोयोगवादी कवि शमशेर बहादुर सिंह जी है। कविता में कवि ने सूर्यादय से पहले के मनमोहक छवि का सुन्दर चित्र उभारा है। सूर्योदय की मनोहारी चित्रण वर्णन किया गया है।
व्याख्या- कवि कहते है सुबह–सुबह जब सूर्य धरती से ऊपर की ओर उठता है तो सूरज की हलकी लालिमा की रोशनी फ़ैल जाती है। मानो काली रंग की सिल को लाल केसर से धो दिया गया है। जहा आसमान काली सिल और सूरज की लाली केसर के समान दिखाई देती हैं। उस वक़्त ऐसा लगता है जैसे किसिने काली स्लेट पर लाल खड़िया चाक लगा दिया हो। यहा काली स्लेट के समान वह सुबह की लालिमा लाल खड़िया चाक के समान मली हुई लगती है।