'उषा' कविता का प्रतिपाद्य एवं सार । USHA KAVITA KA PRATIPAD AVAM SHAR | NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 2

'उषा' कविता का प्रतिपाद्य एवं सार । USHA KAVITA KA PRATIPAD AVAM SHAR | NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 2



'उषा'  कविता का प्रतिपाद्य एवं सार । USHA KAVITA KA PRATIPAD AVAM SHAR | NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 2  



 'उषा'  कविता का प्रतिपाद्य एवं सार

प्रतिपादय--  'उषाकविता में कवि शमशेर बहादुर सिंह जी ने सूर्योदय से ठीक पहले के छन की  परिवर्तन  प्रकृति को  शब्द-चित्रन द्वारा  उभारा है। कवि ने गतिशील प्रकृति को अपने शब्दों में बाँधने का अथक  प्रयास किया है। भोर की आसमानी गति के कारन जो  धरती में  हलचल सी प्रतीत होती है वो कवि  जीव से तुलना कर रहा है। इसलिए कवि  सूर्योदय के साथ एक ऐसी  परिवेश की कल्पना करता है जहा एक  गाँव की सुबह से तुलना करता  है- वहाँ एक चौका है जो राख से लीपा हुआ  है एक मसाला पिशनेवाली सिल भी हें और अदृश्य बच्चों के नन्हे  हाथ हें स्लेट की कालि परत में पेंसिल  से रंग लगा देना ।यही कवि के नए प्रतिबिम्ब,उपमानो और सहज सरल प्रतिको का सुन्दर प्रोयोग किया है

सार –कवि शमशेर बहादुर सिंह जी कहते हें की सूर्यादय से पहले जो भोर के समय आसमान की जो नीला  रंगत  होती हें जहा सफ़ेद संख –सा दिखती हें वह बरी मनमोहक होती हें मानो कोई स्त्री रोसोई में राख से चौका लिप रही हो । ज्यो ज्यो सूर्यादय होती हें और उसकी रौशनी की लालिमा फैलती हें तब ऐसा लगता हें मानो की वो मसाले पिसनेवाली कलि सिल को धो कर किसी ने उस पत्थर पर लाल रंग की खड़िया चाक लगा दी हो ।उसा काल की जो नीली  अम्वर में  सूरज ऐसे चमकती हें मानो कोई गोरी युवती का बदन जगमगा रही हो।परन्तु सूर्यादय होते ही भोर की यह प्राकृतिक सोभा लुप्त हो जाती हें ।