Saharsh Swikaraa hai | सहर्ष स्वीकारा है | प्रतिपाद्य एवं सार | NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 2

Saharsh Swikaraa hai | सहर्ष स्वीकारा है | प्रतिपाद्य एवं सार | NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 2

 

Saharsh Swikaraa hai | सहर्ष  स्वीकारा है | प्रतिपाद्य एवं सार | NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 2  

कविता का प्रतिपाद्य एवं सार

 प्रतिपाद्य—कवि गजानन माधव मुक्तिबोध जी की कविताएँ आमतौर पर लंबी होती हैं ।‘सहर्श स्वीकार’ जो उनकी लिखी छोटी कविताओ में से एक हैं जो भूरी–भूरी खाक-धुल काव्य–संग्रह से ली गई हैं। यानिकी एक होता हैं—‘स्वीकारना’ और दूसरा हैं—‘सहर्ष स्वीकारना’ यानि ख़ुशी–ख़ुशी जीवन की उतार-चड़ाव को स्वीकार करना, उनकी लिखी यह कविता से हमे जीवन के सब सुख–दुख,संघर्ष–अवसाद ,उठा–पटक को समान रूप से स्वीकारने की प्रेरणा देती हैं । कवि को जहाँ से यह प्रेरणा मिली –वह प्रेरणा हमे भी उच्च शिखर तक ले जाती हैं । आज वे हमारे सामने नही भी हैं तो भी आसपास उनके  होने का एहसास हैं—

मुस्काता चाँद ज्यों धरती पर रात-भर

मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा हैं

सार-मुक्तिबोध जी कहते  है कि मेरे जीवन में जो कुछ भी हैवह मुझे  सहर्ष स्वीकार है। जीवन में मुझे जो कुछ भी मिला हैवह तुम्हारा दिया हुआ है तथा तुम्हें प्यारा है। मेरी गर्बित गरीबीविचार-धाराजीवन के वो अनुभवदृढ़ताऔर भावनाएँ आदि सब पर तुम्हारा प्रभाव है।मुझे नही पता  तुम्हारे साथ मेरा न जाने कौन सा रिसता है कि मैं जितनी भी अपनी भावनाएँ बाहर निकालने का प्रयास करता हूव भावनाए उतना ही अधिक उमड़ती रहती हैं। कवि कहते की तुम्हारा चेहरा मुझे यु आकर्षित  करती हैं जैसे मेरे ऊपरी धरती पर चाँद के समान अपनी कांति बिखेरता रहता है। कवि कहता है कि मैं तुम्हारे प्रभाव से दूर जाना चाहता हूँ क्योंकि मैं भीतर से दुर्बल पड़ने लगा हूँ। तुम् मुझे ऐसा दड दो ताकि मैं दक्षिण ध्रुव की अमावस्या की अन्धाकर्मयी रात्रि के अँधेरों में गुम हो जाऊँ। मैं तुम्हारी यह तेज प्रकाश  को ज्यादा सहन नहीं कर पा रहा हूँ और तुम्हारी यह अपनापन की भावना मेरे अन्दर तीर की तरह चुभने लगी है। मेरी रूह शक्तिहीन होने लगती है । वह अपनेआप को धरती की अँधेरी गुहाओ में गायब होने की बात कहता हैपरन्तु वहाँ भी उन्हें उनकी प्रेयसी का सहारा है।