Kavitawali Uttar Kand se | कवितावली (उत्तर कांड से) कविता का प्रतिपाद एवं सार| NCERT Solution for class 12 hindi

Kavitawali Uttar Kand se | कवितावली (उत्तर कांड से) कविता का प्रतिपाद एवं सार| NCERT Solution for class 12 hindi

 

Kavitawali Uttar Kand se | कवितावली (उत्तर कांड से) | NCERT Solution for class 12 hindi

कविता का प्रतिपाद  एवं सार

(क) कवितावली (उत्तर कांड से)

प्रतिपाद-कवितावली के (उत्तर कांड)में महान कवि तुलसी दास जी कहते हैं की यह माया रूपि  संसार का समस्त बुरे-भले कर्म और प्रपंचों का मूल जड़ हें यह ‘पेट की आग’।  ईसका  एक बहत गहरी अर्थ हें,जिसके एकमात्र फैसला वे उनके घनस्याम प्रभु श्री राम की कृपा रूपी जल में देखते हैं। वे यह सोचते हें की रामभक्ति में लीन होना एक ऐसी समाधान हें जो यह पेट की आग बुझाएगी और जीवन के सारी संकटों से मुक्ति दिलाएगी,और साथ ही आध्यात्मिक संतुस्टी देनेवाली हैं।

सार-कविता में, तुलसीदास जी कहते हें, पेट की आग सबसे बड़ी आग  है। वे बताते हें मनुष्य धर्म-अधर्म जैसी सारे काम चाहे वह व्यापार-बाणिज्य हो, खेती-खलिहान,चाकरी, चोरी-चकारी, गुप्तचरी, सेवक, नृत्य-संगीत,शिकारी यह सब काम ईसी आग को भुझाने के लिए करनी पड़ती हैं। इस पेट की आग को बुझाने के लिए लोग ऐसी अधर्मी हो जाते हें की वे अपनी बच्चो को बेचने में मजबूर हो जाते हैं। यह पेट की आग को तुलसीदास जी कहते हें ए  बिशाल सागर के गहराई से भी बड़ी है। अब सिर्फ हमारे  घनश्याम जी प्रभु श्री राम इस ज्वाला को सांत कर सकते हैं।

 पहले सवैये- में अकाल की स्थिति को कवि ऐसे चित्रित करते हुए कहते है। इस वक़्त संसार के लोगो का  बहुत दयनीय हाल होती हें,पानी के बगैर कृसक खेती नहीं कर पाते, भीख मागने पर भी भिखारी को भीख नही मिलती नहीं मिलती, ववनिक की बाणिज्य नही चलती तथा नौकरी करनेवालों को नौकरी नहीं मिलती। लोगों को  जीविका निर्वाह का कोई रोजगार ना होने के कारण वे विवश हैं ।हमारी  वेद-पुराणों के अनुसार और संसार की कही-सुनी बातो  से अब लगता हें  कि अब तो घनस्याम जी की दया-दृष्टी  से सब  कुशल-मंगल होगी। वे राम जी से प्रार्थना करते हैं कि अब आप ही इस अकाल  रूपी रावण का संग्हार कर सकते हैं।

 दूसरे सवैये- में कवि ने भक्त की भक्ति की गंभीरता और दयनीय हालत के सामना करने की दृढ़ विश्वास का सजीव-चित्रण किया है। वे कहते हैं,कोई भी मुझे अति चालक  कहे, संन्यासी कहे, कोई बड़े या छोटे बनाये,मुझे इन सब से कोई फर्क नही पड़ता में जो हु जैसा हु मुझे अपनी फिक्र नही क्युकी  मैं किसी की पुत्री की विवाह अपने पुत्र के साथ   नहीं करना चाहता हूँ और ना ही किसी की जात उछालने वाला हु । मैं तो प्रभु राम का सिर्फ सेवक  हूँ। जिसे मेरे वारे में जो अच्छा लगे कह सकता हैं । मैं भीख माँग कर पेट भर सकता हु तथा में मस्जिद में सो जाऊंगा ,परन्तु मुझे किसी सेकोई मतलब नहीं है। मैं खुदको पुरी तरह से प्रभु श्री  राम जी को समर्पण कर दिया ।