वे भूले नहीं जा सकते निबंध का सारांश | Ve Bhule Nahi Ja Sakti Path ka Summary

वे भूले नहीं जा सकते निबंध का सारांश | Ve Bhule Nahi Ja Sakti Path ka Summary

 

वे भूले नहीं जा सकते निबंध का सारांश | Ve Bhule Nahi Ja Sakti Path ka Summary


पं. कामाख्या प्रसाद त्रिपाठी

 

            'वे भूले नहीं जा सकतेशीर्षक के लेखक पं. कामाख्या प्रसाद त्रिपाठी एक सफल राजनीतिज्ञ होने के साथ ही कुशल निबन्धकार भी हैं। असम के प्राकृतिक सौन्दर्य का वर्णन और चित्रांकन जिस प्रकार इनकी लेखनी से हुआ है वह अन्यत्र मिलना दुर्लभ है। प्रस्तुत लेख में उन्होंने गोपीनाथ बरदलै का जीवन-चित्र हमारे समक्ष प्रस्तुत किया है।

            गोपीनाथजी राजनीतिक व्यक्ति होने के साथ ही महामानव भी थे। उनके हृदय में राष्ट्रीयता की जो ज्वाला प्रज्ज्वलित थी उससे असम ही नहीं सम्पूर्ण भारतवर्ष आलोकित हो गया। त्रिपाठी जी ने उनके जीवन के सम्पूर्ण क्षेत्रों का अध्ययन किया है। यही कारण है कि उनके जीवन की कोई घटना त्रिपाठीजी की लेखनी से अछूती नहीं रह सकी।

            गोपीनाथजी असम के जन-जन पर छाये हुए थे। सत्य और ईमानदारी के अनन्य भक्त थे। स्वतन्त्रता संग्राम में उन्होंने जो भूमिका निभायी वह असम के इतिहास में अमर है। लौकिक सुख को तिलांजलि देकर माँ की स्वतन्त्रता हेतु उन्होंने एक निर्भीक एवं साहसपूर्ण सेनानी का रूप धारण कर लिया। देश की जनता में उन्होंने ऐसा मंत्र फूँका कि सम्पूर्ण जनता स्वतंत्रता की बलिवेदी पर चढ़ने के लिए कटिबद्ध हो गयी। विभिन्न यातनाओं का सामना करते हुए उन्होंने नेतृत्व में पर्याप्त सफलता प्राप्त की। स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरान्त अपने मंत्री-पद पर रहकर सेवा में न्यायप्रियता एवं कर्मठता का जो आदर्श प्रस्तुत किया वह सतत् अनुकरणीय है।

    

        महात्मा गाँधी से संपर्क ने उनके व्यक्तित्व को और भी मुखरित कर दिया। इनकी बहुमुखी प्रतिभा एवं कार्य-कुशलता ने इनको जन-जन का सच्चा प्रतिनिधि बना दिया। ये संगीत के भी कुशल कलाकार थे। कर्तव्य परायणता इनके जीवन का लक्ष्य था। असम की असहायअनाथपद-दलित एवं निरीह जनता का उद्धार एवं उत्थान इनके जीवन का मुख्य उद्देश्य था। गाँधी-सिद्धांतों के ये सच्चे अनुयायी थे। लोगोंनेताओं एवं मुल्लाओं की गुमराह करने वाली नीति को इन्होंने जादूगर की भाँति तिरोहित कर दिया। विषम परिस्थितियों में इनकी कार्यक्षमता में आश्चर्यजनक शक्ति का संचार होता था।

            असम को पूर्व पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में मिलाने की जब वार्ता चल रही थीउस समय उन्होंने इसका प्रतिवाद तो किया हीकिन्तु भारत का असम को अपने अंतर्गत रखने में उनके अदम्य साहस का प्रदर्शन था। त्याग और बलिदान के द्वारा इन्होंने महामानव पद प्राप्त कर लिया। गोपीनाथजी आज अपने पार्थिव शरीर से हमारे बीच नहीं हैं किन्तु उनके द्वारा प्रस्तुत आदर्श ने असम के जनमानस में ध्रुवतारा की भाँति अपना स्थान बना लिया है। यह भावी पीढ़ियों को निरन्तर प्रकाश ही नहीं देगा अपितु विषम परिस्थितियों में मार्ग दर्शन भी करेगा। आज भी उनके चरणों में हम श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हैं। हमारी मातृ भूमि को ऐसे ही पुजारियों की आवश्यकता हैजो पद लिप्साअर्थ लोलुपताद्वेषईर्ष्यास्वार्थ इत्यादि दुर्गुणों से पूर्णतः मुक्त हों।

  

          मृत्यु के कुछ पूर्व इन्होंने जीवन से विराम लेना चाहाकिन्तु जनता ने इनको ऐसा नहीं करने दिया। अपनी-अपनी श्रद्धा से उन्होंने अपने प्रिय नेता को अपनी ओर आकृष्ट कर लिया। हिन्दी का सम्यक ज्ञानार्जन कर इन्होंने गीता से संबंधित महात्मा गाँधी के विचारों को लिपिबद्ध कियाजिसका असमिया भाषा में भी अनुवाद किया गया। असम के कुटीर उद्योग-धंधों में इनका सहयोग सदैव प्रशंसनीय रहा है। आज का असम इस महामानव की ही देन है। असम का कण-कण उनके प्रति श्रद्धा से नतमस्तक है।

            अंततोगत्वा यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि जब तक असम रहेगागोपीनाथजी का नाम अमर रहेगा। उनके आदर्शों का पालन ही हमें जीवन में सफलता प्रदान कर सकता है।