कालिदास का भारत - भगवतशरण उपाध्याय : Kalidas ka Bharat

कालिदास का भारत - भगवतशरण उपाध्याय : Kalidas ka Bharat

कालिदास का भारत - भगवतशरण उपाध्याय : Kalidas ka Bharat 




          कालिदास का भारत' महावीर प्रसाद द्विवेदी द्वारा रचित एक साहित्यिक निबन्ध है, जिसमें कालिदास युगीन भारत की सामाजिक व सांस्कृतिक स्थिति पर प्रकाश डाला गया है।

          यह अफसोस की बात है कि पाश्चात्य सभ्यता और संस्कृति से प्रभावित होकर हम अपने गौरवपूर्ण अतीत को भूल रहे हैं। यह किसी भी जाति के लिए गौरव का विषय नहीं हो सकता। आज भारत की सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन को देख यह अनुमान लगाना ही मुश्किल हो गया है कि कभी इसी देश में रघु, दिलीप और राम जैसे महान राजा भी रहे होंगे। इसी भारत में रघु नामक एक महान राजा हुआ करते थे। उसकी महानता और दानशीलता का उल्लेख कालिदास ने 'रघुवंशम्' नामक काव्य में किया है। 

          कालिदास ने उस रघु को अपने काव्य का नायक बनाया था जो ससागरा पृथ्वी के अधिपति थे। वे केवल प्रजा की रक्षा के लिए ही हाथ में अस्त्र उठाते थे। एक बार राजा रघु ने अपनी सारी संपत्ति विश्वजित् नामक यज्ञ में दे डाली थी। इसी विपन्नावस्था में उसे एक र धर्म संकट का सामना करना पड़ा था। 

          राजा रघु के राज्य में वरतंतु नाम का एक महान तपस्वी तथा विद्वान् महात्मा थे। उनके शिष्यों में एक था कौत्स। अब उसका अध्ययन समाप्त हो गया और वह पूर्ण विद्वान् बनकर गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने योग्य हुआ तब वरतंतु ने उसे घर जाने की आज्ञा दी। परन्तु कौत्स ने अपने गुरु से आग्रह किया कि वे गुरु दाक्षणा ले। वरतंतु ने गुरु दक्षिणा लेने से मना कर दिया। पर कौत्स ने जब बार बार गुरु दक्षिणा लेने का आग्रह किया तो वे क्रोधित हो गए और उससे कहा 

          चौदह करोड़ रुपये माँगने कौत्स महाराज रघु के पास पहुँचता है। कौत्स को देख राजा रघु बड़ा खुश होता है। वे सेवा सत्कार के पश्चात् वरतंतु तथा आश्रम निवासियों का कुशल-समाचार पूछने लगता है। कौत्स अपने आगमन का कारण बताने से कतराने लगता है क्योंकि उसने अपनी आँखों से रघु की विपन्नावस्था को देखा । रघु अपना सब कुछ दान कर चुका था। परन्तु रघु के बार-बार आग्रह करने पर कौत्स ने अपने आगमन का कारण बता ही दिया। रघु ने चौदह करोड़ रुपये देने का वचन दिया। चौदह करोड़ रुपये प्राप्त करने के लिए रघु ने निर्णय लिया कि वे कुबेर की अलकापुरी पर आक्रमण कर देगा। तैयारियाँ हुई। पर रात ही को उसका खजाना असर्फियों से अकस्मात् भर गया। उसमें चौदह करोड़ से अधिक ही था। राजा ने सब कुछ कौत्स को देने का आग्रह किया, पर कौत्स ने केवल चौहद करोड़ ही स्वीकार किया। 

          यह घटना प्राचीन भारत की यह एक धुंधली-सी झलक है। इस घटना से इसका भी पता चलता है कि उस जमाने में विद्वता की कितनी कदर थी। महाभारत और रामायण की उत्कृष्ट कथाओं से पाठकों को कालिदास " महाकवि ने ही परिचय कराया था। यह निस्सन्देह महान कार्य है कि अगर गुरु दक्षिणा देना ही है तो चौदह करोड़ रुपये लाकर दे। कौत्स इस आज्ञा को सनकर जरा भी नहीं घबराया और चौदह करोड रुपये देने का वचन देकर वहाँ से चल पडा। लेखक के अनुसार आज एसा शिष्य कहाँ है जो गुरु दक्षिणा के रूप में चौदह करोड़ देने के लिए तैयार हो जाता है। चौदह करोड़ रुपये दान देना राजा के लिए भी जो कठिन है।