Saharsh Swikaraa hai | सहर्ष स्वीकारा है | व्याख्या | NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 2
1
जिंदगी में जो कुछ है, जो भी है
सहर्ष स्वीकारा है;
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है
वह तुम्हें प्यारा है।
गरबीली गरीबी यह, ये गंभीर अनुभव सब
यह विचार-वैभव सब
दृढ़ता यह, भीतर की सरिता यह अभिनव सब
मौलिक है, मौलिक है
इसलिए कि पल-पल में
जो कुछ भी जाग्रत है अपलक है
संवेदन तुम्हारा है!!
शब्दार्थ - सहर्ष-खुशी के साथ। स्वीकारा-मन से माना। गरबीली - स्वाभिमानिनी। गंभीर-गहरा । अनुभव-व्यावहारिक ज्ञान। विचार-वैभव- भरे-पूरे विचार। दृढ़ता- मज़बूती। सरिता- नदी। भीतर की सरिता- भावनाओं की नदी। अभिनव- नया। मौलिक- वास्तविक। जाग्रत- जागा हुआ। अपलक-निरंतर। संवेदन- अनुभूति।
प्रसंग - प्रस्तुत
काव्यांश पाठ्यपुस्तक 'आरोह भाग 2' में संकलित कविता सहर्ष स्वीकारा है से उद्धृत है। इसके रचयिता गजानन माधव
मुक्तिबोध हैं । इस कविता में, कवि ने जीवन में दुख-सुख, संघर्ष-अवसाद, उतार-चड़ाव
को सम्यक रूप से स्वीकार करने की प्रेरणा दी है।
व्याख्या- कवि गजानन माधव मुक्तिबोध जी
कहते है कि मेरी जीवन मेरे पास में जो कुछ है, जैसा भी
है, वह सब वे ख़ुशी-खुशी अपनाया है।क्योंकी मेरा
जो कुछ भी है, वह सब मेरे प्रेयशी को अच्छा लगता है। वे
कहते मेरी स्वाभिमान युक्त गरीबी मुझे अपनी गरीबी से हीनता या ग्लानी की अनुभूति
कभी नही होती । में गर्वित हु अपनी गरीबी से ।
मेरे जीवन के वास्तविक ज्ञान,विचारो का सागर , सुध्रिढ़ व्यक्तित्व और मन में जो नदी की तरह बहती भावनाए हें ये सब नए और
वास्तविक हैं। इनकी वास्तविकता का कारण यह है कि मेरे जीवन में हर गतिविधि पर हर
घटना,जो कुछ वास्तविक उपलब्धिया है, यह सब तुम्हारी अदृश्य प्रेरणा से मिली
है।
2
जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है
जितना भी उड़ेलता हूँ, भर-भर फिर आता है
दिल में क्या झरना है?
मीठे पानी का सोता है
भीतर वह, ऊपर तुम
मुसकाता चाँद ज्यों धरती पर रात-भर
मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है!
शब्दार्थ-रिश्ता-रक्त संबंध। नाता-संबंध। उड़ेलना-बाहर निकालना। सोता-झरना।
प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक 'आरोह भाग 2' में संकलित कविता सहर्ष
स्वीकारा है से उद्धृत है। इसके रचयिता गजानन
माधव मुक्तिबोध हैं। इस कविता में, कवि ने जीवन में दुख-सुख, संघर्ष-अवसाद, उठा-पटक सम्यक भाव से अंगीकार करने की प्रेरणा दी
है।
व्याख्या-इस कविता में मुक्तिबोध जी कहते है कि तुम्हारे साथ न जाने कौन-सा गहरा संबंध है और वो कौन सा नाता है कि मेरे अन्दर समाहित हें और तुम्हारे प्रेम रूपी जल को जितना बाहर उड़ेलता हूँ, वह फिर-चारों ओर से झरने के जल की तरह इकट्ठा बह आता है और मेरे हृदय में भर जाता है। ऐसा लगता है मानो दिल में कोई झरना बह रहा है और यह स्नेह से भरी मीठे पानी के स्रोत के समान है जो मेरे ह्रदय की प्यास बुझाती रहती है। इधर ह्रदय में स्नेह है और उधर तुम्हारा चाँद जैसा मुस्कराता और जगमगाता चेहरा अपने असीम सौदर्य के प्रकाश से मुझे नहाता रहता है। कवि को अपनी प्रिया ही अंदरूनी व बाहरी जगत-दोनों को आगे प्रेरित करती हैं।
3
सचमुच मुझे दंड दो कि भूलूँ मैं भूलूँ मैं
तुम्हें भूल जाने की
दक्षिण ध्रुवी अंधकार-अमावस्या
शरीर पर, चेहरे पर, अंतर में पा लूँ मैं
झेलूँ मैं, उसी में नहा लूँ मैं
इसलिए कि तुमसे ही परिवेष्टित आच्छादित
रहने का रमणीय यह उजेला अब
सहा नहीं जाता है।
नहीं सहा जाता है।
ममता के बादल की मँडराती कोमलता भीतर पिराती है ।
कमज़ोर और अक्षम अब हो गई है आत्मा यह
छटपटाती छाती को भवितव्यता डराती है
बहलाती सहलाती आत्मीयता बरदाशत नहीं होती है !!
शब्दार्थ- दंड-सजा। दक्षिण ध्रुवी अंधकार-दक्षिण ध्रुव पर छाने वाला गहरा अँधेरा। अमावस्या-चंद्रमाविहीन काली रात। अंतर-हृदय, अंतःकरण। परिवेष्टित-चारों ओर से घिरा हुआ। आच्छादित-छाया हुआ। रमणीय-मनोरम । उजेला प्रकाश। ममता-अपनापन। मंडराती-छाई हुई। पिराती-दर्द करना। अक्षम-शक्तिहीन । भवितव्यता-भविष्य की आशंका। बहलाती-मन को प्रसन्न करती। सहलाती-दर्द को कम करती हुई। आत्मीयता-अपनापन।
प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक 'आरोह भाग 2' में संकलित कविता सहर्ष
स्वीकारा है से उद्धृत है । इसके रचयिता गजानन माधव मुक्तिबोध हैं। इस कविता में, कवि ने जीवन में दुख-सुख, संघर्ष-अवसाद, उठा-पटक सम्यक भाव से अंगीकार करने की प्रेरणा दी है।
व्याख्या- कवि अपना प्रिया को सचमुच भूलना चाहता है क्युकी वह चाहता है कि प्रिया उन्हें भूलने की सजा दे। वे अपनी प्रिया की दी हुई सजा को भी ख़ुशी के साथ अपनाने के लिए तैयार है। प्रिया को भुलाना कवि के लिए अमावस्या और दक्षिणी ध्रुव पर होने वाली छह मास का रात्रि के समान होगा। कवि उस अँधेरी कलि रात में गुम हो जाना चाहता है। वे उस अंधियारे को अपने शरीर और हृदय पर महसूस करना चाहता है। इसका कारण यह है कि प्रिया के स्नेहमयी प्रकाश ने उसे घेर लिया है। यह प्रकाश अब उसके लिए असहनीय है क्युकी प्रिया की स्नेह रूपी बादल की कोमलता हरवक्त उसके अंतरात्मा में मँडराती रहती है। यही कोमल ममता उसके हृदय को पीड़ा पहुचाता है और इस अद्धभुत निश्छल और उज्जवल प्रेम के प्रकाश उनका मन सहन नही कर पा रहा हें । इसके कारण कवि के आत्मा अत्यंत कमज़ोर हो गई है। प्रिया की यह स्नेह उनके मन को अन्दर –ही –अन्दर पीड़ित कर रहा है कि उसे भविष्य में होने वाली अनहोनी से डर लगने लगा है कि कभी प्रिया के प्रभाव से अलग होना पड़ा तो वह अपना पहचान कैसे बचाए रख सकेगा। अब उसे अपने प्रिया का मन को प्रसन्ना करना,पीड़ा कम करना और रह-रहकर अपनापन जताना और बरदास्त नहीं होता।कवि प्रिया के स्नेह से स्वयं को मुक्त करके आत्मनिर्भर बनना चाहता है।
4
सचमुच मुझे दंड दो कि हो जाऊँ
पाताली अँधेरे की गुहाओं में विवरों में
धुएँ के बादलों में
बिलकुल मैं लापता
लापता कि वहाँ भी तो तुम्हारा ही सहारा है !!
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है
या मेरा जो होता-सा लगता है, होता-सा संभव है
सभी वह तुम्हारे ही कारण के कार्यों का घेरा है, कार्यों का वैभव है
अब तक तो जिंदगी में जो कुछ था, जो कुछ है
सहर्ष स्वीकारा है
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है
वह तुम्हें प्यारा है।
शब्दार्थ-पाताली अँधेरा-धरती की गहराई में पाई जाने वाली धुंध। गुहा-गुफा। विवर-बिल। लापता-गायब। कारण-मूल प्रेरणा। घेरा-फैलाव। वैभव-समृद्धि।
प्रसंग- प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक 'आरोह भाग 2' में संकलित कविता सहर्ष
स्वीकारा है से उद्धृत है। इसके रचयिता गजानन माधव मुक्तिबोध हैं। इस कविता में, कवि ने जीवन में दुख-सुख, संघर्ष-अवसाद, उठा-पटक सम्यक भाव से अंगीकार करने की प्रेरणा दी
है।
व्याख्या- कवि कहता है कि मैं प्रिया के
स्नेह से दूर जाना चाहता हूँ। वह प्रिया से सजा पाना चाहता हैं। ऐसी सजा जो कि प्रिया से दूर होने पर वह धरती की अँधेरी
गुफाओं व सुरंगों में छुप जाए। ऐसी जगहों जहा अपनी अस्तित्व भी अनुभव न हो
या फिर वह धुएँ के बादलों के समान घनघोर अंधकार में छिप जाए जो प्रिया के न होने का अनुभव हो।पर ऐसी अंधरी गुफाओ पर भी उसे
प्रिया का ही सहारा है। कवि के जीवन में जो कुछ भी है या जो कुछ अपना-सा लगता है, वह सब प्रिया के अपनेपन के
कारण है। उसकी जीवन की हर , स्थितियाँ, भविष्य की उन्नति-अवनति की सभी संभावनाएँ प्रियतमा के कारण हैं।कवि
हर सुख-दुख, सफलता-असफलता को ख़ुशी-ख़ुशी इसलिए स्वीकार किया है क्योंकि प्रिया को अच्छे लगते
है। उन्हें अस्वीकार करना कवि के लिए असंभव हैं क्युकी वह कवि के जीवन से
पूरी तरह जुड़ी हुई है।