NCERT Solution for class 9 Hindi| उपभोक्तावाद की संस्कृति का सारांश | Upbhoktavad Ki Sanskriti Summary
NCERT Solution for class 9 – उपभोक्तावाद की संस्कृति का सारांश
Upbhoktavad Ki Sanskriti : लेखक ने इस पाठ में
उपभोक्तावाद (Upbhoktavad ) के बारे में बताया है।
उनके अनुसार सबकुछ बदल रहा है। नई जीवनशैली आम व्यक्ति पर हावी होती जा रही है। अब
उपभोग-भोग ही सुख बन गया है। बाजार विलासिता की सामग्रियों से भरा पड़ा है।
एक से बढ़कर एक टूथपेस्ट बाजार में उपलब्ध हैं। कोई दाँतो को मोतियों जैसा
बनाने वाले,कोई मसूढ़ों को मजबूत रखता है तो कोई वनस्पति और
खनिज तत्वों द्वारा निर्मित है। उन्ही के अनुसार रंग और सफाई की क्षमता वाले कपड़े
भी बाजार में मौजूद हैं। पल भर में मुँह की दुर्गन्ध दूर करने वाले माउथवाश भी
उपस्थित है। सौंदर्य-प्रासधन में तो हर माह नए उत्पाद जुड़ जाते हैं। अगर एक साबुन
को ही देखे तो ऐसे साबुन उपलब्ध हैं जो तरोताजा कर दे, शुद्ध-गंगाजल
से निर्मित और कोई तो सिने-स्टार्स की खूबसूरती का राज भी है। संभ्रांत महिलओं की
ड्रेसिंग टेबल पर तीस-तीस हजार के सौंदर्य सामग्री आराम
से मिल जाती है।
वस्तुओं और परिधानों की दुनिया से
राहों में जगह-जगह बुटीक खुल गए हैं। अलग-अलग ब्रांडो के नई डिज़ाइन के कपड़े आ गए
हैं। घड़ियां अब सिर्फ समय देखने के लिए नहीं बल्कि प्रतिष्ठा को बढ़ाने के रूप
में पहनी जाती हैं। संगीत आये या न पर म्यूजिक सिस्टम बड़ा होना चाहिए भले ही
बजाने न आये। कंप्यूटर को दिखावे के लिए ख़टीदा जा रहा है। प्रतिष्ठा के नाम पर
शादी-विवाह पांच सितारा होटलों में बुक होते हैं। इलाज करवाने के लिए पांच सितारा
हॉस्पिटलों में जाया जाता है। शिक्षा के लिए पांच सितारा स्कूल मौजूद हैं कुछ दिन
में कॉलेज और यूनिवर्सिटी भी बन जाएंगे। अमेरिका और यूरोप में मरने के पहले ही
अंतिम संस्कार के बाद का विश्राम का प्रबंध कर लिया जाता है। कब्र पर फूल-फव्वारे, संगीत आदिका इंतज़ाम कर लिया जाता है। यह भारत में तो नहीं होता पर भविष्य
में होने लग जाएगा।
हमारी परम्पराओं का अवमूल्यन हुआ है, आस्थाओं का क्षरण हुआ है। हमारी मानसिकता में गिरावट आ रही है। हमारी
सिमित संसाधनों का घोर अप्व्यय हो रहा है। आलू चिप्स और पिज़्ज़ा खाकर कोई भला
स्वस्थ कैसे रह सकता है? सामाजिक सरोकारों में कमी आ रही है। व्यक्तिगत केन्द्रता बढ़ रही है और स्वार्थ
परमार्थ पर हावी हो रहा है। गांधीजी के अनुसार हमें अपने आदर्शों पर टिके रहते हुए
स्वस्थ बदलावों को अपनाना है। उपभोक्ता संस्कृति ( Sanskriti )भविष्य के लिए एक बड़ा खतरा साबित होने वाली है।
उम्मीद करती हूँ आपको
हमारा ये पोस्ट पसंद आया होगा। पोस्ट अच्छा लगा तो इसे अपने दोस्त के साथ शेयर
करना न भूले। किसी भी तरह का सवाल हो तो आप हमसे कमेन्ट बॉक्स में पूछ सकतें हैं।
साथ ही हमारे Blogs को Follow करे जिससे आपको हमारे हर
नए पोस्ट का Notification मिलते रहे। अधिक
जनकारी के लिए आप हमारे website : www.educationforindia.com पर visit
करे । इस website पर आपको हिंदी से
सम्बन्धित सभी post मिल जाएगी ।
हमारे हर पोस्ट आपको Video के रूप में भी हमारे YouTube चेनल Education
4 India पर भी मिल जाएगी।
एक से बढ़कर एक टूथपेस्ट बाजार में उपलब्ध हैं। कोई दाँतो को मोतियों जैसा
बनाने वाले,कोई मसूढ़ों को मजबूत रखता है तो कोई वनस्पति और
खनिज तत्वों द्वारा निर्मित है। उन्ही के अनुसार रंग और सफाई की क्षमता वाले कपड़े
भी बाजार में मौजूद हैं। पल भर में मुँह की दुर्गन्ध दूर करने वाले माउथवाश भी
उपस्थित है। सौंदर्य-प्रासधन में तो हर माह नए उत्पाद जुड़ जाते हैं। अगर एक साबुन
को ही देखे तो ऐसे साबुन उपलब्ध हैं जो तरोताजा कर दे, शुद्ध-गंगाजल
से निर्मित और कोई तो सिने-स्टार्स की खूबसूरती का राज भी है। संभ्रांत महिलओं की
ड्रेसिंग टेबल पर तीस-तीस हजार के सौंदर्य सामग्री आराम
से मिल जाती है।
वस्तुओं और परिधानों की दुनिया से
राहों में जगह-जगह बुटीक खुल गए हैं। अलग-अलग ब्रांडो के नई डिज़ाइन के कपड़े आ गए
हैं। घड़ियां अब सिर्फ समय देखने के लिए नहीं बल्कि प्रतिष्ठा को बढ़ाने के रूप
में पहनी जाती हैं। संगीत आये या न पर म्यूजिक सिस्टम बड़ा होना चाहिए भले ही
बजाने न आये। कंप्यूटर को दिखावे के लिए ख़टीदा जा रहा है। प्रतिष्ठा के नाम पर
शादी-विवाह पांच सितारा होटलों में बुक होते हैं। इलाज करवाने के लिए पांच सितारा
हॉस्पिटलों में जाया जाता है। शिक्षा के लिए पांच सितारा स्कूल मौजूद हैं कुछ दिन
में कॉलेज और यूनिवर्सिटी भी बन जाएंगे। अमेरिका और यूरोप में मरने के पहले ही
अंतिम संस्कार के बाद का विश्राम का प्रबंध कर लिया जाता है। कब्र पर फूल-फव्वारे, संगीत आदिका इंतज़ाम कर लिया जाता है। यह भारत में तो नहीं होता पर भविष्य
में होने लग जाएगा।
हमारी परम्पराओं का अवमूल्यन हुआ है, आस्थाओं का क्षरण हुआ है। हमारी मानसिकता में गिरावट आ रही है। हमारी
सिमित संसाधनों का घोर अप्व्यय हो रहा है। आलू चिप्स और पिज़्ज़ा खाकर कोई भला
स्वस्थ कैसे रह सकता है? सामाजिक सरोकारों में कमी आ रही है। व्यक्तिगत केन्द्रता बढ़ रही है और स्वार्थ
परमार्थ पर हावी हो रहा है। गांधीजी के अनुसार हमें अपने आदर्शों पर टिके रहते हुए
स्वस्थ बदलावों को अपनाना है। उपभोक्ता संस्कृति ( Sanskriti )भविष्य के लिए एक बड़ा खतरा साबित होने वाली है।
उम्मीद करती हूँ आपको हमारा ये पोस्ट पसंद आया होगा। पोस्ट अच्छा लगा तो इसे अपने दोस्त के साथ शेयर करना न भूले। किसी भी तरह का सवाल हो तो आप हमसे कमेन्ट बॉक्स में पूछ सकतें हैं। साथ ही हमारे Blogs को Follow करे जिससे आपको हमारे हर नए पोस्ट का Notification मिलते रहे। अधिक जनकारी के लिए आप हमारे website : www.educationforindia.com पर visit करे । इस website पर आपको हिंदी से सम्बन्धित सभी post मिल जाएगी ।
हमारे हर पोस्ट आपको Video के रूप में भी हमारे YouTube चेनल Education
4 India पर भी मिल जाएगी।
